
नगर में शरोमणि संत श्री गुरु रविदास जी महाराज का जयंती पर्व बड़ी धूमधाम के साथ मनाया गया।
05 फ़रवरी, 2023
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सितारगंज:(चरनसिंह सरारी) पूरे देश भर में आज शरोमणि संत श्री रविदास जी महाराज का जयंती पर्व बड़ी धूमधाम के साथ मनाया गया, उसी के तहत आज सितारगंज नगर में भी संत श्री गुरु रविदास जी महाराज का जयंती पर्व मनाया गया है आपको बताते चलें कि हमारा देश साधु-संतों और ऋषि-मुनियों की धरती है। यहां अनेक महान संतों ने जन्म लेकर भारतभूमि को धन्य किया है। इन्हीं में से एक नाम महान संत रविदास जी का है। संत रविदास बहुत ही सरल हृदय के थे और उनका जन्म 14 वी शताब्दी में हुआ था। महाराज जी दुनिया का आडंबर छोड़कर हृदय की पवित्रता पर बल देते थे। हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ पूर्णिमा के दिन ही रविदास जयंती मनाई जाती है।मध्यकालीन कवि, समाज सुधारक संत रविदास जी का जन्म यूपी के वाराणसी में 16 फरवरी 1398 ई० को हुआ था। वहीं कुछ जानकारों का मानना है कि उनका जन्म 1450 ई० में हुआ। हालांकि एक बात पर सभी इतिहासकार सहमत हैं कि संत रविदास जी का जन्म माघ पूर्णिमा को हुआ था। इसी कारण उनकी जयंती माघ पूर्णिमा को मनाई जाती है। उन्होंने दोहों और उपदेशों के माध्यम से जाति आधारित सामाजिक भेदभाव के खिलाफ संदेश दिया। संत रविदास जी परमेश्वर कबीर जी के समकालीन थे। संत रविदास जी का जन्म भारत के उत्तर प्रदेश के बनारस (काशी) में चंद्रवंशी (चंवर) चर्मकार जाति में हुआ था । संत रविदास जी के पिता का नाम संतोष दास और माता जी का नाम कलसा देवी था। जिस दिन रविदास जी का जन्म हुआ उस दिन रविवार था इस कारण उन्हें रविदास कहा गया। रविदास जी चर्मकार कुल में पैदा होने के कारण जीवन निर्वाह के लिए अपना पैतृक कार्य किया करते थे तथा कबीर साहेब जी के परम भक्त होने के नाते सतभक्ति भी करते थे। संत रविदास जी जूते बनाने के लिए जीव हत्या नहीं किया करते थे बल्कि मरे हुए जानवरों की खाल से ही जूते बनाया करते थे। सतभक्ति करने वाला साधक इस बात का खास ध्यान रखता है कि उसके कारण किसी जीव को कभी कोई हानि या दुख न पहुंचे। चमार जाति में पैदा होने के कारण संत रविदास जी को ऊंच-नींच, छुआछूत, जात-पात का भेदभाव देखने को मिला। संत रविदास जी ने समाज में व्याप्त बुराईयों जैसे वर्ण व्यवस्था, छुआछूत और ब्राह्मणवाद , पाखण्ड पूजा के विरोध में अपना स्वर प्रखर किया।