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नौकरशाही के आगे नतमस्तक ‘धाकड़ धामी

नौकरशाही के आगे नतमस्तक ‘धाकड़ धामी

 


देहरादून। सरकारी जमीन से अतिक्रमण हटाने एवं लव जिहाद पर लगाम लगाने की गरज से, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा हाल ही में अपनाए गए बेहद सख्त एवं आक्रामक रुख के चलते आजकल उन्हें सूबे में ‘धाकड़ धामी’ भी कहा जाने लगा है। मगर हाल ही में उत्तराखंड की राजधानी देहरादून मे हुए एक दिलचस्प घटनाक्रम के बाद तो ऐसा लगने लगा है, जैसे राज्य के मुख्यमंत्री की आक्रामकता एवं सख्ती केवल और केवल उत्तराखंड के आम लोगों पर ही टूटती है ,राज्य की बेलगाम नौकरशाही पर ‘धाकड़ धामी’ का कोई जोर नहीं है । बताना होगा कि अभी कुछ रोज पहले ही उत्तराखंड सरकार ने सूबे के तमाम आईएएस अफसरों को इधर से उधर किया है। राज्य सरकार की इस ट्रांसफर प्रक्रिया में मनमाफिक पोस्टिंग ना मिल पाने के कारण एक जूनियर आईएएस अफसर सौरभ गहरवार इतने कुपित हुए कि उन्होंने अपने इस्तीफे की धमकी तक दे डाली। फिर क्या था ? सरकार के हाथ पांव फूल गए और मुख्यमंत्री के सचिव विनय शंकर पांडे और एक अन्य आईएएस अफसर तत्काल को इस जूनियर अफसर को मनाने के लिए टिहरी भेजा गया। खबर है कि इस आईएएस अफसर को समझाने के लिए सूबे के एक कबीना मंत्री को भी लगाया गया। नतीजतन तमाम मान मनौव्वल एवं तेल- पालिश के बाद जाकर कहीं उक्त आईएएस अफसर टिहरी की बजाए रुद्रप्रयाग का जिलाधिकारी बनने पर राजी हुए। हालांकि मान मनोबल का यह हाई वोल्टेज ड्रामा कुछ ही घंटों में समाप्त हो गया, लेकिन इस सारे घटनाक्रम ने उत्तराखंड सरकार के नौकरशाही पर नियंत्रण को लेकर एक सवालिया निशान तो खड़ा कर ही दिया है, साथ ही लोग चुटकियां लेते हुए यह भी कहने लगे हैं कि समझ में नहीं आता कि ‘धाकड़ धामी’ नौकरशाही को गाइड कर रहे हैं या नौकरशाही ‘धाकड़ धामी’ को गाइड कर रही है। यहां पर यह बताना आवश्यक है कि उत्तराखंड में बेलगाम नौकरशाहों के मनमानी पूर्ण कारनामे जब तब सामने आते ही रहते हैं और कभी-कभी तो सूबे के नौकरशाह धामी मंत्रिमंडल के सदस्यों के आदेश की नाफरमानी तक कर देते हैं । कदाचित यही कारण है कि कुछ मौके पर राज्य के कुछ कबीना मंत्री मुख्यमंत्री से यह तक कहते हुए सुने गए हैं कि नौकरशाहों की एसीआई लिखने का अधिकार मंत्रियों को मिलना चाहिए। धामी सरकार में नंबर दो की हैसियत रखने वाले सतपाल महाराज तो यह मांग एक अरसे से करते आ रहे हैं। देखा जाए तो मंत्रियों की यह मांग एक तरह से काफी हद तक जायज भी है ,क्योंकि अगर नौकरशाहों को आचरण नियमावली के उल्लंघन पर दंडित किए जाने के बजाय उनकी मान मनौव्वल की जाएगी तो नौकरशाहों का बेलगाम होना लाजिमी है। ताजा घटनाक्रम को ही लें तो इसमें संबंधित आईएएस पर आचरण नियमावली के तहत तत्काल एक्शन होना चाहिए था, लेकिन हुआ इसके एकदम उलट। जिस अफसर के खिलाफ सख्त एक्शन होना चाहिए था ।सरकार का सहारा सिस्टम उस अफसर की मान मनौव्वल करता रहा । ऐसे में अफसरों के हौंसले तो बुलंद होंगे ही। लिहाजा अगर इस क्रम में अगर यह सवाल खड़ा किया जाए कि कहीं उपरोक्त जूनियर आईएएस अफसर के हाथ में सरकार की कोई कमजोर नस तो नहीं ? तो यह किसी भी दृष्टि से अतिशयोक्ति पूर्ण नहीं होगा।

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