इतिहास के नाम पर नैरेटिव, 'शौर्यगाथा' को भुला दिया गया।
26 दिसंबर, 2023
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सितारगंज:(चरनसिंह सरारी)नगर के नई मंडी स्थित सभागार में सिखों के दसवें गुरु गोविंदसिंह जी महाराज के चार साहिबजादों के बलिदान को समर्पित गोष्ठी का आयोजन किया गया।जिसमें वक्ताओं ने चार साहिबजादों के बलिदान के बारे में विस्तृत जानकारी दी। कार्यक्रम के दौरान सिख वक्ताओं ने बताया कि उनके संघर्ष की शुरुआत आनंदपुर साहिब किले से हुई जब गुरु गोविंद सिंह और मुगल सेना के बीच चल रही जंग के महीनों बीत गए थे।गुरुजी किसी भी कीमत पर हार मानने को तैयार नहीं थे। उनकी हिम्मत और हौसले देखकर औरंगजेब भी दंग था।जब सीधी-सीधी जंग में औरंगजेब उन्हें मात नहीं दे पाया तो हराने के लिए रणनीति अपनाई।उसने गुरुजी को एक खत लिखकर भेजा, उस पत्र में लिखा, मैं कुरान की कसम खाता हूं। अगर आप आनंदपुर का किला खाली कर देंगे, तो मैं आपको यहां से जाने दूंगा।
गुरुजी को इस बात का अंदेशा था कि औरंगजेब धोखा कर सकता है, लेकिन उन्होंने किले को छोड़ना ठीक समझा। इसके बाद वही हआ जिसका डर था मुगल सेना ने उन पर और उनकी सेना पर आक्रमण कर दिया। सरसा नदी के किनारे लम्बे समय तक जंग चली ओर और गुरुजी का पूरा परिवार तितर-बितर हो गया।
गुरुगोबिंद सिंह के छोटे साहिबजादे जोरावर सिंह और साहिबजादे फतेह सिंह अपनी दादी मांं गुजरी देवी के साथ निकल गए। बड़े साहिबजादे अपने पिता गुरु गोविंद सिंह के साथ सरसा नदी पार करके चमकौर साहिब गढ़ी पहुंचे।
जंगल पार करने के बाद छोटे साहिबजादे दादी के साथ एक गुफा में ठहर गए, इसकी जानकारी लंगर के सेवक गंगू ब्राह्मण को मिली तो वो सभी को अपने घर ले आया। गंगू को पैसे का लालच मिला और उसने विश्वासघात कर दिया। विश्वासघात के बाद कोतवाल ने छोटे साहिबजादों और दादी को बंदी बना लिया। इस दौरान दादी ने साहिबजादों को गुरु नानक देव और गुरु तेग बहादुर की बहादुरी की कहानियां सुनाईं।
अगले दिन सभी को सरहंद के थाने ले जाया गया. इस दौरान उनके साथ बड़ी संख्या में लोग साहिबजादों को वीर पिता के सपूत कहते हुए आगे बढ़ रहे थे। सरहंद में उन्हें ठंड में ऐसी जगह रखा गया जहां कोई भी हार मान जाए, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।अगले दिन उन्हें वजीर खान की कचहरी लाया गया और उसने दोनों साहिबजादों से मुस्लिम धर्म स्वीकारने को कहा. उसने कहा, अगर मुस्लिम धर्म स्वीकार करते हो तो तुम्हे मुंह मांगी मुराद मिलेगी। यह सुनकर साहिबजादे बोले, हमें अपना ही धर्म सबसे प्रिय है।
यह सुनने के बाद काजी ने उन्हें बागी की संतान कहते हुए दीवार में जिंदा चुनवाने फतवा जारी किया गया। अगले दिन फिर उनसे धर्म बदलने और सजा से मुक्त करने का एक बार फिर लालच दिया गया, लेकिन वो अपनी बात पर अड़े रहे। नतीजा, जल्लादों ने उन्हें दीवार के बीचों-बीच खड़ा कर दिया और दीवार खड़ी करने लगे।
कुछ समय बाद दोनों साहिबजादे बेहोश हो गए तो जल्लाद चिल्लाया कि अब इन्हें खत्म कर देना चाहिए. इस तरह बेहोश हो चुके दोनों साहिबजादों को शहीद कर दिया गया।
इस दौरान वक्ताओ ने कहा कि नरेंद्र मोदी की भाजपा सरकार के हम इस कदम क़ा धन्यवाद करते हैं कि जो उन्होंने चार साहबजादों को यह सम्मान देते हुए वीर बाल दिवस बनाने का निर्णय लिया है, कार्यक्रम का संचालन अजीत सिंह जोशन ने किया।