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सितारगंज  पर्वतीय रामलीला की तालीम अंतिम पड़ाव पर तीन अक्टूबर से रामलीला का शुभारंभ।

सितारगंज पर्वतीय रामलीला की तालीम अंतिम पड़ाव पर तीन अक्टूबर से रामलीला का शुभारंभ।

सितारगंज:(चरनसिंह सरारी) गत वर्ष की भांति इस वर्ष भी 3  अक्टूबर, से 13 अक्टूबर तक  सितारगंज में उत्तरांचल सांस्कृतिक विकास समित के तत्वाधान में उत्तराखंड की महान संस्कृति के संवर्धन व संरक्षण के लिए इस बार की रामलीला यादगार होने जा रहा है इस बार दर्शकों को उत्तराखंड की राग आधारित रामलीला देखने को मिलेगी,  आयोजन समिति से समिति के अध्यक्ष गोपाल सिंह बिष्ट ने बताया कि,”इस आयोजन के ज़रिए हमारी कोशिश ख़ासकर पहाड़ की उस प्रवासी पीढ़ी को रामलीला से जुड़ी उनकी पुरानी यादों में ले चलना है जिनके लिए अब पहाड़ में जाकर रामलीला देखना संभव नहीं है।”
रामलीला के इस आयोजन का निर्देशन कर रहे पंडित प्रकाश भट्ट  कहते हैं, ”हालॉंकि बीते कुछ समय से अलग—अलग मंचों पर पहाड़ी रामलीला के आयोजन में बग़ैर गायन के भी संवाद इस्तेमाल किए जाने लगे हैं. लेकिन हमारा मक़सद है कि हम पहाड़ के प्रवासियों को रामलीला का बिल्कुल पारंपरिक स्वाद दें, इसलिए हमारे सारे संवाद राग आधारित गायन के साथ ही हैं. यही इस आयोजन की ख़ासियत भी है।”पहाड़ी रामलीलाओं में चौपाई, दोहा, सोरठा को प्रमुख तौर पर भैरवी, मालकौंश, जयजयवंती, विहाग, पीलू और माण रागों में गाया जाता है. इस आयोजन का पहाड़ की प्रवासी बुजुर्ग पीढ़ी के लिए तो ख़ासा महत्व होने ही वाला है लेकिन नई पीढ़ी के लिए भी यह आयोजन एक अनोखा अनुभव बन रहा है, आयोजन से पहाड़ के प्रवासी युवा और बच्चे भी जुड़ रहे हैं।

समिति से जुड़े खजान चन्द जोशी  बताते हैं, ”इस रामलीला के आयोजन में अधिकतर अभिनय कर रहे लोग लंबे समय से अपने अपने अभिनय का लोहा मनवा चुके हैं अच्छी बात यह है कि युवा पीढ़ी अभिनय को लेकर रुचि रखने लगी है इस बार युवा पीढ़ी रामलीला के मंच पर उतरने वाले हैं. अधिकतर लोग युवा हैं और पर्वतीय संस्कृति से जुड़ने का उनका उत्साह देखने लायक है।”

 पारंपरिक तौर पर पहाड़ी रामलीला का आयोजन 10 दिनों का होता है हालांकि 10 दिन में संपूर्ण लीला दिखाना संभव नहीं है. वे कहते हैं, ”हमने स्क्रिप्ट पर काफी काम किया है ताकि सारे ही महत्वपूर्ण प्रसंगों का मंचन हो सके और दर्शक पारंपरिक अंदाज़ में पूरी रामकथा का आनंद ले सकें।

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